प्रदूषित पवन
आज फ़िर चाँद परेशान है,
प्रदूषण में धुंधली हुई चाँदनी
तारे भी दिखते नहीं ठीक से,
आज आसमान क्यों वीरान है।
आज फिर चाँद परेशान है।
प्रदूषण का असर,
चाँदनी पर हुआ
चाँदनी हो रही है धुआं-धुआं।
घुट रही चाँदनी मन ही मन,
यह कैसी है अशुद्ध सी पवन
दम घोट रही सरेआम है,
आज चाँद फ़िर परेशान है।
प्रदूषित पवन में विष मिले हैं,
यह सुनकर सभी हैरान हैं।
चाँदनी ले रही है सिसकियां,
आज चाँद फ़िर परेशान है।।
_____✍️गीता
अतिसुंदर रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी, सादर आभार🙏
आज फ़िर चाँद परेशान है,
प्रदूषण में धुंधली हुई चाँदनी
तारे भी दिखते नहीं ठीक से,
आज आसमान क्यों वीरान है।
कवि गीता जी की बहुत बेहतरीन पंक्तियां, और अति उत्तम रचना।
इस सुन्दर और प्रेरक समीक्षा हेतु हार्दिक आभार सतीश जी, बहुत-बहुत धन्यवाद
चाँदनी और चाँद का सुन्दर मानवीयकरण करती हुई आपकी कविता प्रदूषण की समस्या को उजागर करती है
सुंदर प्रयास
आपकी प्रेरक और सुन्दर समीक्षा हेतु हार्दिक आभार वसुंधरा जी
लाजवाब
धन्यवाद प्रज्ञा जी