प्रेम को बाँट लूँगा मैं
नख नुकीले काट लूँगा मैं
प्रेम को बाँट लूँगा मैं
दूर कर के बुराई सब
भलाई छाँट लूँगा मैं।
मगर जो सत्य पथ है वह
जकड़ रखना पड़ेगा ना,
हाथ में लठ साफ सा
रखना पड़ेगा ना,
कि कोई जानवर बनकर
न नोचे सत कदम मेरे,
मुझे अपना सहारा एक तो
रखना पड़ेगा ना।
किसी से बोल दिल का एक तो
कहना पड़ेगा ना,
मुझे अपनों का अपना भी
कभी रहना पड़ेगा ना।
जरा सा मुस्कुरा दे
ओ मेरे हम दम प्रीतम तू
मुझे है नेह तुझसे यह मुझे
कहना पड़ेगा ना।
बहुत सुंदर सर
बहुत खूब
बहुत शानदार कविता
नख नुकीले काट लूँगा मैं
प्रेम को बाँट लूँगा मैं
दूर कर के बुराई सब
भलाई छाँट लूँगा मैं।
मगर जो सत्य पथ है वह
जकड़ रखना पड़ेगा ना,
_________ सत्य, भलाई और प्रेम की राह पर चलने को प्रेरित करती हुई कवि सतीश जी की अत्यंत शानदार कविता। भाव और शिल्प का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करती हुई एक श्रेष्ठ रचना, अति उत्तम लेखन
बहुत ही शानदार कविता
आपकी सभी कविताएँ बहुत सुन्दर हैं सर, पाठक का मन मोह लेती हैं। लेखनी यूँ ही चलती रहे, जय हिंद
अति सुंदर पंक्तियां सुंदर शब्दावली