प्रेम पीपासा
प्रेम पीपासा तृ्प्ती की आस,
भटक रहा जीव अनायास,
प्रेम व्याप्त है अपने अन्दर,
ढूँढ रहा घट-घट के अन्दर,
प्रेम ऐसा अनमोल खज़ाना,
देने से हीं मिल पाता,
माँग रहे सब प्रेम यहाँ
देने को न कोई तैयार,
ढूँढ रहे सब गठबंधन में,
रस्मों के दायरे में बाँध,
ये कहाँ है बँधने वाला,
अविरल ये तो बहने वाला,
प्रेम उन्हीं को मिल पाता,
जो ढूँढे अपने में आप,
प्रेम खज़ाना असीम अपार
बंधन में न इसको बाँध,
प्रेम जीवन की है प्यास,
ढूँढो इसको अपने पास,
प्रेम पीपासा तृप्ती की आस,
भटक रहा जीव अनायास
Behatareen 🙂
Thanks Mukesh ji
nice lines 😀
Thanks Sonit ji
Nice
Thanks Dev Rajput ji
Umda
Thanks. Udit ji
lajabaab
Thanks simran ji
Thanks Simran ji