प्रेम भावना बढ़े
ऐसी बातें क्यों करें, जो देती हों पीड़,
सबसे अच्छा बोल दें, अपनों की हो भीड़।
अपनों की हो भीड़, सभी अपने हो जायें,
बेगानापन छोड़, सभी अपने हो जायें।
कहे लेखनी छोड़, चलो सब ऐसी वैसी,
प्रेम भावना बढ़े, बात कर लो अब ऐसी।
ऐसी बातें क्यों करें, जो देती हों पीड़,
सबसे अच्छा बोल दें, अपनों की हो भीड़।
अपनों की हो भीड़, सभी अपने हो जायें,
बेगानापन छोड़, सभी अपने हो जायें।
कहे लेखनी छोड़, चलो सब ऐसी वैसी,
प्रेम भावना बढ़े, बात कर लो अब ऐसी।
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Very nice poem
Thanks
कहे लेखनी छोड़, चलो सब ऐसी वैसी,
प्रेम भावना बढ़े, बात कर लो अब ऐसी।
__________ सब से मिलजुल कर प्रेम भाव से रहने की बहुत सुंदर कविता की सृष्टि हुई है कवि सतीश जी की लेखनी से, छंद शैली में बहुत शानदार रचना और लाजवाब अभिव्यक्ति, अति उत्तम लेखन
उच्चस्तरीय समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी। लेखनी को अभिवादन
अति उत्तम कविता
बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर रचना
सादर धन्यवाद
खूबसूरत रचना
बहुत बहुत धन्यवाद
Nice line