बरखा की फुहार
तपती धरती पर पड़े, जब बरखा की फुहार,
सोंधी सुगन्ध से महके धरती, ठंडी चले बयार।
मयूर नाचे झूम – झूम कर, बुलबुल राग सुनाए,
तितली प्यारी आए सैर को, कोयल कुहू – कुहू गाए।
मधुकर की मीठी गुंजन है, पपीहा गाए राग – मल्हार,
तपती धरती पर पड़े जब बरखा की फुहार…..
Nice
Thanks
Sunder
बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏🙏
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद जी 🙏
सोंधी सुगन्ध से महके धरती, ठंडी चले बयार।
यह विलक्षण काव्य प्रतिभा सदैव ही बनी रहे। बिंदास होकर लेखनी आगे बढ़े।
वाह वाह, बहुत खूब
बहुत सारा धन्यवाद आपका सतीश जी 🙏 इतनी सुंदर समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार। आपकी समीक्षाओं से बहुत उत्साह मिलता है।
आप बहुत सुंदर समीक्षा करते हैं।
आपकी लेखनी है ही काबिलेतारीफ
🙏🙏
वाह जी, लेखनी में बहुत क्षमता है
सादर धन्यवाद सर बहुत बहुत आभार 🙏
बहुत खूब
शुक्रिया कमला मैम 🙏
बहुत खूब
शुक्रिया पीयूष जी 🙏