बहना की मुराद
39: बहना की मुराद
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बहना की मुराद हुई पूरी
भाई का आना था जरूरी
बरसों से चाह थी उस सावन की
जिसकी पूर्णमासी को भाई की
सूनी कलाई पे, होगी मंगल कामना की
रेशम के धागे से बंधी अरमानों की डोरी
हर साल राखी देख मन को समझाती
खुद के प्रश्नों में खुद को उलझाती
देखते देखते राखी आके चली जाती
हर बार रह जाती कामना अधूरी
फिर सुना भाई बहन का है एक और त्योहार
बहन बजरी कूटती,आशीष देती बार-बार
जीभ में रेगनी चुभा गाली की करती बौछार
मंगल कामना की लालसा भाई दूज को हुईं पूरी
अबतक जो आश थी अधूरी जाके अब हुई पूरी
मन हर दिन अपनों की खैर मनाता है
हर पल अपनों की याद दिलाता है
भाई बहन की दूरी अन्तर्मन को जलाता है
भाई बहन में ना हो कभी कोई दूरी
अतिसुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद
सुंदर भाव
भाई बहन के प्यार को आपने बहुत ही सजगता के साथ एकता की डोरी में बांधने का प्रयास किया है। इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी
बहुत -बहुत धन्यवाद
बहुत सुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत अच्छा
बहुत बहुत धन्यवाद
Good
thankst
बहुत सुंदर है