बालपन मोबाईल में

खो गए खेल
आज बचपन के,
रम गया बालपन मोबाइल में,
आँख का सूख रहा पानी है
टकटकी आज है मोबाइल में।
वक्त है ही नहीं बचा जिससे
संस्कारों को सीख लें बच्चे,
कुछ रहा बोझ गृहकार्यों का
बाकी सब खो गया मोबाईल में।
न रहा सीखना बड़ों से कुछ
न रही चाह सीखने की अब
न रहा शिष्य गुरु का नाता अब
गुरु तो अब भर गया मोबाईल में।
खेल क्रिकेट के कब्बडी के
हो रहे खेल सब मोबाईल में,
तनाव बढ़ रहा मोबाईल में
शरीर घट रहा मोबाईल में।
छीन बचपन के खेलकूद सभी
खा रहा है दिमाग मोबाईल
जानते हैं कि एक घुन है यह
फिर भी हैं डूबते मोबाईल में।

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Responses

  1. हो रहे खेल सब मोबाईल में,
    तनाव बढ़ रहा मोबाईल में
    शरीर घट रहा मोबाईल में।
    छीन बचपन के खेलकूद सभी
    __________ हर कार्य मोबाइल से ही करते हैं आजकल बच्चे, समसामयिक यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करते हुए कवि सतीश जी की अत्यंत सच्ची प्रस्तुति

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