बूंद बूंद बूंदें।
बूंद बूंद बूंदें
बूंद बूंद बूंदें
बूंद बूंद बरसती है ,
आंखों से मेरी ।
तूने क्यों की रुसवाई ,
जज्बातों से मेरे।
बूंद बूंद बूंदें
बूंद बूंद बूंदें
तू धूप सा चुभता रहा,
मैं बर्फ सी पिंघलती रही।
तू गाज सा गिरा मुझ पर ,
मैं सब्र सी सहती गई।
नैना ये तरसते हैं,
यादों में तेरी।
कितनी नींद गवाही ,
यादों में तेरी ।
बूंद बूंद बूंदें
बूंद बूंद बूंदें
पागल मनवा ढूंढे तुझको,
पर तू तो मिलता नहीं।
बेबसी का जाम है तू ,
जाम ये चढ़ता नहीं।
जाम ये मिलता नहीं।
दिल का बहम मिटा नहीं,
कि तू बेवफा नहीं।
फिर वफा तो की ही नहीं,
हालातों से मेरे।
बूंद बूंद बूंदें
बूंद बूंद बूंदें
बूंद बूंद बरसती है ,
आंखों से मेरी ।
तूने क्यों की रुसवाई ,
जज्बातों से मेरे।
बूंद बूंद बूंदें
बूंद बूंद बूंदें
——मोहन सिंह मानुष
आपकी काव्य रचना सराहनीय है, हमें आपकी दो पंक्तियां बेहद पसंद आयीं –
तू धूप सा चुभता रहा,
मैं बर्फ सी पिंघलती रही।
बहुत बहुत आभार व धन्यवाद 🙏😊
वाह वाह
धन्यवाद ,महोदय जी
आँखों।
बूंद-बूंद बूंदें अच्छा प्रयास
बहुत बहुत आभार सर समीक्षा के लिए ,आगे त्रुटियों पर थोड़ा और ध्यान दूंगा।
कोई बात नहीं सबसे हो जाता है
सुंदर रचना
बहुत सुंदर गीत