बेटी
हर घर की खुशी व रौनक है बेटी
उसी से दुनियां शुरू व खत्म होती
किलकारी सब को हर्षा जाती
हर मात पिता को ही भा जाती
परिवार एकता का कारण जो
जीवन जीने की प्रेरणा है वो—
दो घर की सुंदरता उससे ही है
बेटों का संबल भी वो ही तो है
फिर भी कमजोर कैसे बन जाती
कैसे दुर्जन का शिकार वो हो जाती
सबला को समाज ने अबला बनाया
ममता का सबने ही फायदा उठाया
शक्ति साहस का वर्षों से प्रतीक बेटी
फिर भी उसे बचाने की जरूरत पड़ी
बेटी पर बहुत ही सुन्दर कविता
हर घर की खुशी व रौनक है बेटी
उसी से दुनियां शुरू व खत्म होती।
आपने भाव की बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति की है। बेटी है तभी संसार है। आपकी लेखनी के सुन्दर भाव, व शिल्प का अंदाज बेहतरीन है।
अति उत्तम विकल्प प्रस्तुत किया है आपने।
“सबला को समाज ने अबला बनाया
ममता का सबने ही फायदा उठाया
शक्ति साहस का वर्षों से प्रतीक बेटी
फिर भी उसे बचाने की जरूरत पड़ी”
बहुत ही सुंदर पंक्तियां
बहुत सुंदर भाव
अतिसुंदर