भटके राही
भटके राही
क्यू भटके हो??क्यू बिखरे हो??
क्यू बहके हो??क्यू खोये हो??
टुकङे जो देश के कर दोगे,
कत्ल उम्मीदो का कर दोगे।
बरबादी देश की करके तुम,
ममता की छाया क्या पाओगे??
दो जख़ की आग मे जल कर तुम,
जीते,जी हीे मर जाओगे।
गर हो ना सके,इस माँ के तुम,
तो लानत ऐसे जीवन पर।
आजा़दी!आजा़दी!आजा़दी!
मतलब भी क्या? तुम जानोगे,
तुमको जो मिली आजा़द हवा़,
मूल्य क्या तुम पहचानोगे??
इस प्रेम मयी धरती माँ पर,
क्यू जह़र खुरानी करते हो।
चन्द टुकङो की खातिर तुम क्यू??
गद्दार हैं ये क्यू सुनते हो??
दुश्मन जो चैन अमन के हैं,
मोहरे क्यू उनके बनते हो?
कुछ चैन ,अमन के दुश्मन को
शातीं,खुशियां ना भायी थी।
टुकङो मे देश को बांट गये,
बरबादी की कुछ स्याही है।
उन घावो को लहू देने,
कुछ मूर्ख युवा आये हैं।
जो बहके हैं,बहकायेहैं।
गद्दारो के भङकाये हैं।
जागो जागो इंसान बनो!
अच्छे और बुरे की पहचान करो।
वरना पछताना पाओगे,
फिर वापिस ना आ पाओगे
फिर वापिस ना…….
निमिषा सिघंल
Good
🙏🙏
वाह
Thanks
😀
Nice
Thanks
वाह जी वाह
😀😀
बहुत खूब
😀😀
😀😀
Nice
धन्यवाद
सुंदर सामयिक रचना
Nice