भेदभाव की बातें छोड़ो

भेदभाव की बातें छोड़ो
भारत देश सजाओ ऐसे
जिसमें सभी समान रूप से
गुँथे हुए हों माला जैसे।
जाति-धर्म के भेद हमारी
एका को कमजोर कर रहे,
वो छोटा मैं बड़ा कह रहे
नफरत व्यापार कर रहे।
भेदभाव है भीतर का घुन
इस घुन को अब दूर भगाओ,
सभी मनुष्य एक जैसे हैं
बस एका का भाव जगाओ।

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Responses

  1. हमारे देश के विकाशपथ के हर कंटक का बहुत ही सटीक चित्रण किया है आपने ।
    हमारी प्रगति के सबसे बङे अवरोधक

    1. धन्यवाद जी, निश्चित तौर पर हमारे सामाजिक ताने -बाने में व्याप्त भेद की भावना प्रगति की सबसे बड़ी बाधक है।

  2. हे समाज के दर्पण
    क्यों सच कहते कहते रुक गए|
    डर था किसी का क्या, हे मानवता के राही,
    फिर सच लिखने से क्यों रुक गए|

    यह बात पुरानी हो गई है
    इससे अब कुछ मिलता ना|
    क्यों बाड़ छुपा रखा तरकस में,
    उठा अब भी कुछ बिगड़ा ना|
    ✍✍✍✍✍✍✍🙏
    बस सच्चाई से एक कदम दूर हैं
    बहुत खूबसूरत कविता

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