मंजिल की खोज एक माँ को
एक बूढ़ी औरत, कमर झुकी हुई, एक हाथ में लाठी, दूसरे हाथ में एक छोटी सी गठरी लिए गाँव के पगडंडी पकड़ कर जा रही थी। सिन्हे में गम, आँखों में आंसू को अपना हम सफर मान कर बढ़ती जा रही थी। गाँव से काफी दूर निकलने के बाद रास्ते में एक नयी नवेली दुल्हन को देखी। वह पहली बार ससुराल बसने के लिए जा रही थी। उसे गौर से बूढ़ी औरत देखने लगी। उसे देख कर अपनी बीती कहानी याद आने लगी। जब वह भी किसी की दुल्हन बन कर अपनी ससुराल गयी थी। उस दिन चारो तरफ रंग बिरंगी लाईट से घर सजी हुयी थी। गौतम (बूढ़ी औरत के पति)बार बार उसकी सुंदरता की तारीफ़ करता था। समय का पहिया यों ही घूमता गया। नौ साल बाद जब वह माँ बनी तब गौतम एक दुर्घटना में मारा गया। सधारण परिवार में रहने के कारण उसे काफी मेहनत करनी पड़ी थी। राज को पढ़ाने लिखाने के लिए। उसकी मेहनत तब ही रंग लाई जब राज को एक अच्छी सरकारी नौकरी मिल गई। जब खुशी कदम चूमने लगी तब राज को विवाह करा दिया गया। घर में पत्नी आने के बाद धीरे धीरे राज के मिजाज भी बदलने लगा। पत्नी भी सास की सेवा में कमी कर दी। वह समझ चुकी थी, शायद अब मेरा गुजारा मुश्किल हो जाएगा। फिर भी मन मार कर रहने लगी। समय अपनी रफ्तार में बढ़ता गया। अब राज भी बाप बन गया था । वह अपने बच्चे व पत्नी में इतना घुल मिल गया कि, वह अपनी माँ तक को भूल गया। कभी कभी रात में भूखे पेट ही सो जाती थी। बेटे बहू तो होटल से खा कर रात में घर लौटते थे। एक दिन की बात है। वह अपने पोते को आंगन में खेला रही थी कि, अचानक बच्चा फर्श पर मुंह के बल गिर पड़ा। बहू दौड़ कर आयी। उसे गाली गलौज करती हुई उस माँ के गालों पे दो चार थप्पड जमाती हुई कही “कलमुंही चल, निकल मेरे घर से “।वह चुपचाप अपने कमरे में चली गई। जब शाम को राज घर आया तब सारी गलती माँ को ठहरा कर उसे डांट सुनवा दी। अब वह माँ सोचने लगी शायद अब मेरा गुजारा इस घर में नहीं होगा। बस यही सोच कर सुबह के सूरज निकलने से पहले घर को हमेशा के लिए छोड़ कर गाँव की टेढ़ी मेढ़ी पगडंडी को पकड़ ली। अचानक किसी ने कहा “बूढ़ी माई कहाँ खो गयी हो “।वह अपनी अतीत से बाहर निकली। फिर वहाँ से आगे की ओर चल पड़ी।
बहुत मार्मिक रचना
ऐसे बेटे और बहुओं पर शर्म आती है
और कहा भी गया है कि
” कर्म प्रधान विश्व रचि राखा
जो जस करी सो तस फल चाखा”
जैसी करनी वैसी भरनी
उनके बच्चे जैसा करते देखेंगे उनके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे…
धन्यवाद मैम। मेरी रचना को आपने पढ़ा। समीक्षा तो आपने बहुत ही सुन्दर दी है। आपको मेरी ओर से बहुत शुक्रिया।
आभार सर नवीन विषय और रचना लाने के लिए
बहुत ही करुणा युक्त कहानी है । एक अकेली विधवा स्त्री पर इतने अत्याचार, वो भी उसीके पुत्र के द्वारा ,बहुत ही शर्मनाक व्यवहार
बहुत ही करुणा से भरी हुई कहानी है
करुणा से परिपूर्ण रचना, अतीत का खूबसूरत चित्रण किया है आपने
अतिसुंदर भाव