मनुष्य हो तुम
मनुष्य हो तुम
मनुष्यता सदैव पास रखो
पाशविक वृत्तियों को
पास आने न दो।
दया का भाव रखो
प्रेम की चाह रखो
ठेस दूँ दूसरे को
भाव आने न दो।
दया पहचान है कि
आप में मनुष्यता है
अन्यथा फर्क क्या है
फर्क का भान रखो।
पेट भर जाये खुद का
खूब भरता ही रहे
भले औरों को क्षुधा
चैन लेने ही न दे,
भावना आदमियत की
नहीं यह ध्यान रखो,
दया धरम ही सच है
मन में इसका ज्ञान रखो।
मनुष्यता सदैव पास रखो पाशविक वृत्तियों को
पास आने न दो। दया का भाव रखो
प्रेम की चाह रखो
______मनुष्यता के गुण समझाती हुई कवि सतीश जी की बहुत सुंदर प्रस्तुति। उत्तम लेखन
इतनी सुंदर समीक्षा हेतु बहुत बहुत धन्यवाद
अति उत्तम रचना
धन्यवाद
बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद
मनुष्य हो तुम
मनुष्यता सदैव पास रखो
पाशविक वृत्तियों को
पास आने न दो।
दया का भाव रखो
प्रेम की चाह रखो
ठेस दूँ दूसरे को
भाव आने न दो।
दया पहचान है कि
आप में मनुष्यता है…
सुंदर रचना
जो मानवता सिखलाती है