माँ
माँ ही एक ऐसा बैंक है यारों,
जो हर दुःख सुख के भाव सहेजे,
कभी भी देदे नोट पुराने रक्खे जो पल्लू में लपेटे,
पापा मानो क्रेडिट कार्ड कभी न करते जो इनकार,
खुद वो टूटा जूता पहने हमको लादें सब कुछ यार,
हम करते हर पल कितनी मांगे, जब तब पापा की जेब झांके,
पापा बस रखकर उधार की पर्चा,
चेहरे पर छिपाते धर मुस्कान का कर्जा, मुँह से न बोले वो कुछ भी यार,
अब कुछ भी तुम समझो मेरे यार, करलो जी भर कर उनसे प्यार॥
राही (अंजाना)
sahi kaha aapne!
Thanks
Beautiful poetry 🙂
Thanks ji
सुन्दर रचना