मानवता

एक व्यक्ति का करने गए
थे अंतिम संस्कार
कच्ची-पक्की बना रखी थी,
ढह गई वह दीवार,
ढह गई वह दीवार..
बेमौत पच्चीस मरे,
यह क्या हो गया अरे !
लालच का ऐसा भी,
क्या आलम हुआ
गिरेंगी छत दीवारें चंद महीनों में ही,
क्या इतना भी ना अनुमान हुआ।
थोड़े से लालच की खातिर,
मानवता का कितना नुकसान हुआ
लालच बढ़ता ही जा रहा,
मानवता मरती जाती है।
क्या ये भी हत्या के सम ना हुआ??
सोच-सोच के रूह थर्राती है।
____✍️गीता

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

अपहरण

” अपहरण “हाथों में तख्ती, गाड़ी पर लाउडस्पीकर, हट्टे -कट्टे, मोटे -पतले, नर- नारी, नौजवानों- बूढ़े लोगों  की भीड़, कुछ पैदल और कुछ दो पहिया वाहन…

Responses

  1. यह कवि गीता जी की संवेदनासिक्त रचना है। इस कविता ने सच्ची संवेदना में अपनी आवाज मिलाई है। इस कविता ने आज के पतनोन्मुख चरित्रों को उजागर किया है जो जरा सा लालच के चक्कर में आकर घटिया निर्माण करते हैं। औऱ उससे निरीह लोग जान से हाथ धो बैठते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा था, जैसे-जैसे सभ्यता विकसित होती जाएगी, कवि कर्म कठिन होता जाएगा। लेकिन आज भी विकसित होता समाज ऐसे कृत्य कर रहा है जिससे कवि की लेखनी सच कहे बिना नहीं रह पा रही है। बहुत ही यथार्थ चित्रण

    1. कविता की इससे सुंदर समीक्षा तो हो ही नहीं सकती है सर। यह समाचार सुनकर हृदय सच में व्यथित हो उठा था । इस प्रेरणादायक समीक्षा के लिए आपका हृदय से धन्यवाद सतीश जी🙏

+

New Report

Close