मित्र अपना कह दिया

आपने जब हमें
मित्र अपना कह दिया
यकीन मानिए,
जलवा हमारा बढ़ गया।
अब ये माथा आपका
झुकने न देंगे हम कभी
आपको सिर-माथ पर
हमने सजा कर रख लिया।

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Responses

  1. वाह सर, मित्र की शान में इतनी सुन्दर और अनूठी रचना…
    कवि श्रेष्ठ की श्रेष्ठ लेखनी…लेखनी को मेरा प्रणाम है सतीश जी ..।

    1. इतनी सुंदर समीक्षा, प्रेरणा और उत्साहवर्धन हेतु सादर अभिवादन। धन्यवाद शब्द आपकी टिप्पणी के सामने कुछ भी नहीं है। प्रणाम

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