मिलन की प्यास

आपकी चाहत के तलबगार है
हम।
आओ एक हो जाए हम।।
ढलती गोधूलि , उस पे हवा के झोंके।
उफ,,, रुत भी कहने लगी एक जान है हम।।

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गोधूलि

ए ढलती गोधूलि के बेला मन को मोह लेती है हमारी ख्यालों में नयी उर्जा भर देती है हम इसी उर्जे के सहारे आने वाले…

गोधूलि

फिर वही ढलती गोधूलि मन में एक एहसास जगा दिया। नादान था दिल, बिना सोचे दिल दग़ाबाज़ को दे दिया।।

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

    1. शुक्रिया पांडे जी। आपने मेरी रचना को स्तरीय समझा बहुत बहुत धन्यवाद। 

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