मुझे पहचान लो

कविता कहाँ, मैं झूठ लिखता हूँ
मुझे पहचान लो
दूसरों पर चोट करता हूँ
मुझे पहचान लो।
जब कभी कोई कराहे
दर्द से फुटपाथ पर,
नजरें चुरा लेता हूँ उससे ,
अब मुझे पहचान लो।
शांति से सब गा रहे हों
प्रेम का संगीत जब
मैं वहां नफरत जगाता हूँ
मुझे पहचान लो।
जिंदगी की फिल्म
चलती जा रही है प्यार की
मैं विलन का रोल करता हूँ
मुझे पहचान लो।

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Responses

  1. वाह! खलनायक को फिल्मों में भी कोई पसंद नहीं करता है,फिर यदि ज़िन्दगी में कोई खलनायकी करे तो उसको कौन पसंद करेगा।
    ज़िन्दगी में खलनायक की भूमिका और उस के साइड इफेक्ट्स को दर्शाती हुई बेहद संजीदा रचना…… लेखनी को नमस्कार🙏

    1. बहुत सारा धन्यवाद गीता जी, आपने इतनी विस्तृत समीक्षा की है। उत्साहवर्धन हेतु पुनः धन्यवाद

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