मुहब्ब्त ने हमें

मुहब्ब्त ने हमें इस कदर
आसिम बना के छोड़ा है,
हर कोई मारकर पत्थर
अजाब देता है।

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

    1. इस सुंदर टिप्पणी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद, आप स्वयं में एक भावपूर्ण उगते हुए सबल कवि हैं। पुनः धन्यवाद

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