मेरा मन

सोना तपा कुंदन बना,
कुंदन तप के राख
मैं तपी तपती रही,
कुंदन बनी ना राख
बरखा ऋतु आई,
आई नई कोंपल हर शाख
मेरे मन भी उठी उमंगें,
छू लूं मैं आकाश

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Responses

  1. कवि ने अपनी व्यथा को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है तथा बहुत ही सहजता से अलंकारों का प्रयोग किया है

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