मेरी नन्हीं परी
जब वो मेरे घर आई
मेरी नन्हीं परी कहलाई
उसको देख के मोहित हो गई मैं,
उसके मंजुल रूप में खो गई मैं
वो, जैसे इक पौधे की डाली
बड़ी ही नाज़ुक, नाज़ुक सी,
पर थोड़ी नखरे वाली
छम – छम कर घूमा करती हैं,
घर, आंगन में सारे
पापा, भैया कहें…….
तोड़ के ला देंगे हम तारे
पापा की परी है वो,
भैया की दुलारी
बातूनी है सबसे ज्यादा
घर भर की है प्यारी ..
…….✍️ गीता……..
अतिसुंदर वात्सल्यपूर्ण चित्रण।
समीक्षा के लिए आपका सादर आभार एवं धन्यवाद भाई जी 🙏
Happy daughter ‘s day
Thank you big brother.. same to you.
बहुत खूब, बहुत सुन्दर रचना
बहुत सारा धन्यवाद है आपका कमला जी🙏 हार्दिक आभार आपका..
बहुत ही सुन्दर
धन्यवाद सुमन जी 🙏
वाह वाह
👌✍✍
Thank you Rishi ji
वात्सल्य रस से परिपूर्ण बेहद स्नेहमयी कविता। सुमधुरता का संचार करने में बेहद सफल कविता।
पापा की परी है वो,
भैया की दुलारी
बातूनी है सबसे ज्यादा
घर भर की है प्यारी ..
सरस्, सहज सुन्दर अभिव्यक्ति।
कविता की सुंदर समीक्षा और सराहना हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी 🙏 बहुत बहुत आभार..
अति ही सुन्दर
बहुत बहुत शुक्रिया आपका कमला जी🙏 हार्दिक आभार।
Very very nice poem
Thanks a lot chandra ji ,I’m very much obliged to you.
बहुत बढ़िया
बहुत बहुत धन्यवाद सर 🙏
वाह वाह
शुक्रिया पीयूष जी🙏
Bahut khoob
Thank you sis.
Bahut khoob
Thank you very much Isha ji
बहुत सुंदर
Thank you Pratima ji
बहुत खूब
शुक्रिया इन्दु जी 🙏
अरे वाह बहुत प्यारी कविता गुड़िया के लिए
Thank you