मेरी सखी
आज फ़िर याद आई वो,
एक सखी मेरे बचपन की ।
जब भी मैं उसके घर जाती थी,
कई – कई घंटे बिताती थी ।
समय का पता ही ना चलता था,
छुट्टी का दिन , उसके बिन ,बड़ा खलता था ।
और आज ये आलम है कि…..
गुज़र जाते हैं कई – कई महीने, कई – कई साल,
जान ना पाते एक – दूजे का हाल ।
वो यादें मेरी अमानत, मेरी थाती हैं,
इसीलिए, मुझे बहुत याद आती हैं।
Very nice
Thank you
जबरदस्त
Thank you very much ☺️
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है।
बहुत बहुत धन्यवाद एवम् आभार आपका सर🙏
अतिसुंदर
सादर आभार भाई जी 🙏
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत शुक्रिया जी 🙏
बहुत बढ़िया
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏