मैं सह सकता हूं।
मैं अखण्ड हूं,
प्रचंड हूं,
निडर हूं ,अजर हूं,
संतोषी हूं ,
मुस्कराती हुई ख़ामोशी हूं,
कड़े दर्द से लड़ सकता हूं,
मैं सह सकता हूं।- २
लोगो के बहानो को,
अपनों के तानों को,
मुसीबतों का सामना भी
कर सकता हूं,
मैं सह सकता हूं।-२
मैं उस पेड़ सा ,
तुफान मैं जो झुक जाएं
सब्र करे, नियति बदलती है
हर बार,
विरोध के समय, जो मूक जाएं
पानी सा नित बह सकता हूं,
मैं सह सकता हूं।-२
कभी कभी करता है मन रो दूं,
आंसूओं से खुद को भिगो दूं,
मिटा दूं वजूद अपना ,
भूल जाऊं हर सपना,
मगर नहीं ,
धैर्य के साथ रह सकता हूं,
मैं सह सकता हूं।-२
सह सकता हूं !
ईर्ष्या को,घृणा को,
हीनता को,
पीड़ा को और दरिद्रता को।
पर नहीं सह सकता हूं !
पेट की बीमारी को,
जीभ की खूमारी को,
पापिन! हाए!भूख को,
हां ! भूख को ,
मैं नहीं सह सकता हूं।-२
मोहन सिंह (मानुष)
कविता में गति सराहनीय है, काव्य पाठ हेतु सुन्दर कविता
धन्यवाद 🙏
वाह
🙏
Good
कविता की लगती रति काफिया रदीफ़ बहुत ही उम्दा है
बहुत सुंदर