मौसम और माहौल
दोस्तों में उल्लास रहे जब हमारे,
मुस्कुरा उठते हैं, तब लब हमारे
व्यथित हो जाए कोई दोस्त गर,
व्याकुल हो जाएं हम भी इधर
कोई दुखी होता है गर उधर कहीं,
कैसे खुश रहेंगे हम इधर हैं यहीं
गर कोई बैरी बाहरी, दिल को दुखाए,
दूर से नमस्ते करें, तुरंत निकल जाएं
करें नज़र अंदाज़ उसे, नज़रों में ना लाएं
माहौल ऐसा है, मौसम भी कैसा,
ना गर्मी, ना सर्दी सुहाना समां है,
मन हो रहा है, जाने कैसा कैसा..
*****✍️गीता
बहुत ही सुंदर लाजवाब कविता
कविता की सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद कमला जी🙏
मित्रों की खुशी को ही अपनी ख़ुशी बताने वाली कवि गीता जी की यह बहुत ही सुन्दर कविता है। सरसता का समावेश है। बहुत ही लाजवाब है वाह।
समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी . अच्छे मित्रों के लिए अच्छे की ही दुआ निकलती है सर, बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
बहुत खूब पंक्तियाँ
बहुत सारा धन्यवाद जी🙏🙏
लाजवाब
बहुत बहुत शुक्रिया प्रज्ञा..
अतिसुंदर
शुक्रिया भाई जी 🙏