यात्रा मां वैष्णो देवी की
कर के शेर की सवारी,
आई माता रानी प्यारी
आई शुभ नव-रात्रि,
मांग लो मुरादें ,माता रानी से
ऊंचे पर्वत पर मंदिर मां का,
बेहद लंबा रस्ता है, यहां का
बाण-गंगा का शीतल जल,
करता रहता है कल-कल
पौड़ी-पौड़ी चढ़ते जाओ,
जय माता की कहते जाओ
देखो ये है अर्धकुमारी,
यहां कुछ खा-पी लें,
सब नर और नारी
ऊंचे पहाड़ और गहरी खाई,
हाथी-मत्था की आई चढ़ाई
समाप्त हुई अब चढ़ाई भारी,
ये सुंदर साझी छत है सारी
आगे चलें तो दिखलाई दिया
माता-रानी का भव्य भवन,
ले पूजा-प्रशाद यहां पर,
लाल चुनरी माथे पर,बांध रहे सब जन
भव्य आरती शुरू हो गई,
जयकारे से गूंज उठा मां का भवन
यही है माता रानी का द्वार,
दर्शन कर को अपरम्पार
नारियल चढ़ा कर ज्योत जलाएं,
मां के पिंडी रूप में,दर्शन पाएं
*******जय माता की*******
*****✍️गीता
सावन के सभी सदस्यों को उनके परिवार सहित, गीता की ओर से शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏
आपको भी बहुत शुभकामनाएं
धन्यवाद प्रज्ञा
🙏बहुत खूब👌👌
Thank you Rishi ji.
अतिसुंदर
बहुत बहुत आभार भाई जी🙏 जय माता की
कवि गीता जी की कलम से निकली बहुत सुंदर कविता है यह, कवि ने आध्यात्मिकता से परिपूर्ण कविता लिखी है। माँ वैष्णो देवी के दर्शन और उस आध्यात्मिक यात्रा का सुखद व मनोरम चित्रण किया है। यात्रा के पड़ाव में आये स्थानों को सुन्दर तरीके से चित्रित किया है। बहुत खूब
कविता की सुंदर समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी ।
मां वैष्णो देवी की यात्रा की सुखद अनुभूति का चित्रण है ।