रातें गुजार देता हूँ…
कल रात चाँद ने कहा मुझसे
कुछ तो परेशानी है तुम्हें
जो रोज़ चले जाते हो तुम
समुंदर किनारे…
जब रात को सब सो जाते हैं चादर तान के
तो तुम मुझे देखते रहते हो !
सुबह होती है तो फिर काम पर चले जाते हो
आखिर तुम कब सोते हो ?
मैं बोला नींद तो आती नहीं
जब से वो आई जिंदगी में
किसी तरह काट लेता हूँ जिंदगी
तेरे जैसा ही है मेरा दिलबर
इसीलिए तुझे देखकर
रातें गुजार देता हूँ अपनी…
बहुत खूब
Thanks
वाह, बहुत ख़ूब चांद का बहुत ही खूबसूरती से मानवीकरण किया है कवियित्री प्रज्ञा जी ने
धन्यवाद दी
अविशवरणीय पंक्तियां
Thanks you sooooo much
Tq