रुबाई
कभी सोचा ना हो वह काम हो जाता है,
जो करीब है वह दूर चला जाता है।
मासूम सा चेहरा इन नाज़ुक-ए- हथेलियों से,
हिना का रंग-चंद अश्कों से उतर जाता है।
फरेब करने वाले खुश रहते हैं नसीहत से,
ईमान ताउम्र का गम खरीद लाता है।
ना कुछ पास था बस सच्ची मोहब्बत थी,
अब तो प्यार करने वाला भी बेईमान नजर आता है।
ना सोंच पास है जो कल भी नजर आएगा,
साया है करीब आके बड़ी दूर चला जाता है।
जो लब-ए- रुखसार बोलने में थर-थराते हैं,
उन्हीं के हाथों से तेरा जनाजा सजाया जाता है।
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बहुत सुंदर और मार्मिक रचना
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Kya baat hai 👌👌👍👍
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