रोटी का टूक

“रोटी का टूक”

वह रो रहा था, सुबक-सुबक कर
हाथों से छाती ,पटक-पटक कर
आंखें हैं लाल ,पसीने से बुरा हाल
सामने पड़ी दो लाशें,
कहने को शरीर ,पर दिखने में  कंकाल !
वीडियो बना रहे कुछ लोग,
सबके मन में बहुत सवाल !
सवाल ?
किसने मार दिया है इनको?
शायद कोई बीमारी ने ?
क्या बीमारी  ?
कहीं तुम्ही ने तो नहीं मार दिया है इनको ,
शराबी लगते हो !
बोलो !
कुछ तो बोलो!
वो दुखिया बेचारा,

विधि का मारा;
खो दिया जिसने,
प्यारी को, लाल को।
क्या बोले ?
बहुत दबाए है दर्द को,
पर क्या बोले ?
अभागा !
क्या करें ?
तमाशा बनता देख,
सहसा वो चिल्लाया!
मार दिया मेरी पत्नी को,
बेटे को!
तुम्हारी इस बीमारी ने ,
सरकार की लाचारी ने।
पापिन भूख!
हां मार दिया।
भूख ने,
रोटी के एक टूक ने,
हाय ! हां ! मार दिया।
                   –मोहन सिंह ( मानुष)

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