लाॅकडाउन ने खाया सब
यूँ हीं बैशाखी चली गई
बिन भंगरा बिन गिद्दा के।
फीके सारे पर्व पर गए
बिना खीर -मलिद्दा के।।
लाॅकडाउन ने खाया सब
हम क्या खाऊँ मुँह को बांध।
धूंधली रह गई रात पूनम की
करवा में क्या करेगा चांद।।
दिन में तारे देखे सौहर
बीबी को है चाँद का इन्तजार।
कपड़े गहने मेंहदी मेकअप
बिन कैसा करवा का त्यौहार।।
फीके रह गए करवा जो तो
धनतेरस भी फीका होगा।
दिवाली की खुशहाली बिन
कैसा ‘ विनयचंद ‘टीका होगा।।
वाह, भाई जी बहुत सुंदर कविता है, एकदम समसामयिक यथार्थ चित्रण
शुक्रिया बहिन
बहुत सुंदर ।
यथार्थ चित्रण
धन्यवाद
बहुत ही उम्दा
यथार्थपरक भाव
धन्यवाद धन्यवाद
👏👏👏