विडम्बना
जिम्मेदारों!!
यूँ उलझ कर आप आपस में
भुला देते हो जनहित को।
बिता देते हो ऐसे ही समय।
खींचातानी गजब की है
आपकी जो भूल कर
आम जीवन के दर्दों को
अलग मुद्दे उठाते हो
हँसाने की जगह
केवल रुलाते हो।
अहिंसा सत्य की बातें
समभाव की बातें
किनारे फेंक देते हो
भिड़े लड़े आपस में समाज
ऐसा यत्न करते हो।
सुंदर भाव ।
बहुत बहुत धन्यवाद
वाह बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर लेखन
शुक्रिया
सत्यपरक रचना 👌👌
Thank you very much