वेद पुराणों की बात है निराली

वेद-पुराणों की बात है निराली ।
राष्ट्रसेवा है सबसे सर्वोपरी ।
जब तक राष्ट्र में एक भी प्रजा भूखा हो,
तब-तक हक नहीं भोजन करने को राजा का ।
यह है उच्च आदर्श राजा का, ऐसे राजा महान है जग में ।
ऐसे भी राजा हुये हमारे देश में, जो राजधर्म के लिये बिक गये प्रजा हाथ है ।
धन्य था वो राज जिनके राजा राम थे, जिनके राजकाल में दण्ड केवल संन्यासियों के अधीन था ।
रामा राम थे प्रजादुखभंजन, वो थे दीन-दुःखी के स्वामी और दुष्टों-दुर्जनों का संहारक ।।

पर आज वर्तमान परिवेश में क्या-क्या होता?
राजा प्रजादुखभंजन नहीं हैं, यह तो भोग-विलास में संलिप्त है ।
इनकी इन्द्रिय शान्त नहीं है, यह तो इन्द्रियों के गुलाम है ।
जो राजा प्रजा की दुःख को न समझें,
वह राजा नहीं वह तो बाल-शिशु व गणिका समान है ।
राजा वहीं जो समझें प्रजादुख को भंजन करे राष्ट्र करें निज-अपने राष्ट्र को ।
राजा है वहीं योग्य जो समझे प्रजा को सुत समान है ।
ऐसे ही राजा कहलाते जगत में दिव्यस्वरूप महान है ।
अन्यथा सब-के-सब पत्थर के मूरत गूँगा समान है ।
जो सुने नहीं प्रजादुख को वह राजा नहीं वह तो गूँगा से भी बदत्तर है ।।
कवि विकास कुमार बिहारी ।।

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