“वो कॉलेज वाला लड़का”
वो कॉलेज वाला लड़का
परीक्षा में मेरे पीछे
बैठा करता था
बोलता कुछ भी नहीं था
पर छुप-छुप के देखा
करता था
सारी परीक्षाओं में
मेरी कॉपी से लिखता
रहता था
पढ़ता कुछ भी नहीं था
मेरे ही भरोसे रहता था
मैं भी ना जाने क्यों
परोपकार करती रहती थी
पलट के कॉपी के पन्ने
उसको दिखलाया
करती थी
मेरी कॉपी से टीपने
के कारण वह भी टॉपर
बन जाता था
मैं आती थी कॉलेज में फर्स्ट
वह भी सेकेण्ड आ जाता था
फिर मिल गई डिग्री और
हम दोनों हो गए अलग-थलग
वो अपने रस्ते और
मैं अपनी सड़क
फिर आयी टी.ई.टी की बारी
वो हो गया बेचारा फेल
मैंने फिर बाजी मारी
काश ! टी.ई.टी में भी वो
मेरे पास बैठा होता
वो भी मेरी तरह
69000 भर्ती में लटका होता !!
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वाह प्रज्ञा जी क्या बात है 🙂🙂🙂👌✍
Thanks
वाह बहुत खूब सुन्दर अभिव्यक्ति
Thanks
बहुत खूब , परोपकारी कवि प्रज्ञा जी की कलम से निकली हुई सुंदर रचना
हाहाहा..!
पेपर में परोपकार कर देती हूँ किसी का भला हो जाता है
That’s nice,so kind of you
अतिसुंदर
Thank
Thanks
सुन्दर रचना
Thanks