वो जूठी कॉफी..!!

तुम मुझे प्यार नहीं करते हो
यही सोंचकर मैं बहुत उदास थी !
तुम आये जब घर तो कुछ
आस जगी..
मैंने जल्दबाजी में बनाई थी
अपने लिये जो एक कप कॉफी
थोड़ी पी ली थी,
तुम आये तो बड़े प्यार से तुम तक पहुंचा दी..
वो कॉफी मेरी जूठी थी
तुम्हारे पास रखी थी वो बड़ी देर से,
जब आकर कहा मैंने
खिड़की की ओट से
वो कॉफी मेरी जूठी है..
तुमने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा !
मैं समझ गई कि तुम अब नहीं पियोगे पर
वो कॉफी जो बड़ी देर से तुम्हारे पास
रखी थी !
तुम्हारे होंठों से लगने की प्रतीक्षा कर रही थी,
वो कॉफी तुम गटागट पी गये…
मैं फिर संशय में पड़ गई
तुम प्यार करते हो या नहीं करते हो ?
वो जो कॉफी का कप’
तुम टेबिल पर छोंड़ गये थे,
शायद जान बूझकर उसमें
कुछ कॉफी छोंड़ गये थे..
मैंने उस कॉफी को उठाकर झट से पी लिया
यूं लगा जैसे अमृत का घूंट पी लिया…

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