शायरी

सितम गैरों की बस्ती में सही
मेरा भी नाम हो जाए
मेरी नींदें छीन कर
चैन से सोने वाली
आज की रात
तेरी नींद भी हराम हो जाए
वीरेंद्र

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शायरी

सितमगारों की बस्ती में सही मेरा भी नाम हो जाए मेरी नींदें छीन कर चैन से सोने वाली आज के बाद तेरी नींद भी हराम…

ग़ैरों की बस्ती में , अपना भी एक घर होता

  ग़ैरों की बस्ती में , अपना भी एक घर होता.. अपने आप चल पड़ते कदम य़ु तन्हा ना य़े सफर होता…. वक्त बिताने को आवाज देती दीवारे साथ छुटने का ना कोई…

“मैं स्त्री हूं”

सृष्टि कल्याण को कालकूट पिया था शिव ने, मैं भी जन्म से मृत्यु तक कालकूट ही पीती हूं।                                                    मैं स्त्री हूं।                                              (कालकूट –…

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