शौक
आसुओं के पानी से जितना धुलता जाता हूँ मैं,
लोग जितना रुलाते हैं उतना खुलता जाता हूँ मैं,
देखने में सबको बेशक बड़ा नज़र आता हूँ मैं,
सच ये के हर पल बचपन में मुड़ता जाता हूँ मैं,
शौक तो खामोशी का ही पाल के रखता हूँ मैं,
पर जब भी बोलता हूँ बोलता चला जाता हूँ मैं।।
राही अंजाना
वाह वाह बहुत खूब
Thanks
वाह
Thanks
बहुत खूब
Thanks
Wahh
Thank
वाह बहुत सुंदर रचना
Thanks
Wah