सखी चली ससुराल

मेरी एक सखी चली ससुराल,
आशीष लेकर बुजुर्गों का।
गले मिलकर सखियों के,
भावी जीवन के सपने
लेकर अपनी अंखियों में
सखी चली ससुराल।
सखियों की भी दुआएँ,
लेती जाना तुम।
साजन सॅंग मिलकर,
नव-सॅंसार बसाना तुम।
पर भूल ना जाना हमको आली,
बतियाॅं वही पुरानी वाली।
याद हमें तुम आओगी ज्यादा,
भूल न जाना अपना वादा।
प्रेम-प्रीत हमारी तुम्हारी,
साजन संग मिल भूल न जाना।
अरे !अरे! रोना नहीं है,
अच्छा अब हॅंस दो ना थोड़ा
ये बन्धन ईश्वर ने जोड़ा।
याद हमें भी रखना बस तुम,
भूल ना जाना सखी प्यारी
साजन के द्वारे अब जा री॥
____✍गीता

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Responses

  1. अच्छा अब हॅंस दो ना थोड़ा
    ये बन्धन ईश्वर ने जोड़ा।
    याद हमें भी रखना बस तुम,
    भूल ना जाना सखी प्यारी
    साजन के द्वारे अब जा री॥
    —- बहुत सुंदर और भावुक कर देने वाली कविता की सृष्टि हुई है। लेखनी को सैल्यूट

    1. कविता की इतनी उत्कृष्ट और उत्साहवर्धन करती हुई समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी, अभिवादन सर

  2. बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां हैं तथा भावुक देने वाली कविता

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