‘सच’ बस तु हौले से चल…
वो पलकों की सजावट से,
वो गलतियों की बिछावट से,
दिखावटी फिसलन की दौड़ में….
मैं नदी से हौसला भर लाऊंगा,
‘सच’ बस तु हौले से चल…
मैं पगडंडी से दूर निकल जाऊंगा||
ऐ जिंदगी तु बतला तो सही,
प्रीत का कितना है फासला???
हो रही जो झूठ की बौछारें,
कितना है नम अब रास्ता,
आत्मविश्वास का छाता लिए…
मैं अपनापन सहज लाऊंगा,
‘सच’ बस तु हौले से चल…
एक दिन मैं मंजिल पर पहुँच जाऊंगा||
अंधेरा घना जो अब छा रहा…
कदम भी थोड़ा डगमगा रहा,
ऐ गति, कुछ पल तु ठहर जरा,
गम की इन मावस रातों में…
मैं एकादशी का चांद बन जाऊंगा,
जिंदगी भी पलकें उठा देखेगी…
जब मैं आसमां से मुस्कराऊंगा,
‘सच’ बस तु हौले से चल…
मैं रोज प्रभात भी जगमगाऊंगा ||
गर्वित नाम की खोज मे…
काम के थकाऊं बोझ मे,
स्मरण है वो माँ का चेहरा…
है वादा इस भागदौड़ मे,
मैं लोटकर भी जरुर आऊंगा…
‘सच’ बस तु हौले से चल…
मैं खुशी का घर भी बनाऊंगा||
– सचिन सनसनवाल ©
सत्य पर आधारित बहुत सुंदर और प्रेरक कविता
बहुत बहुत आभार ||
अत्यन्त सराहनीय
बहुत खूब
शुक्रिया जी ||