समय रूपी डोर

समय पतंग की डोर जैसी l
मांजा बड़ी तेज है l
किसकी पतंग काट जाए विश्वास नहीं l
कभी राजा संग कभी रंक संग l
पल में तेरा पल में मेरा हो जाए l
कब खुशियों की पतंग कट जाए l
कभी दर्द उड़ा ले जाए l
छोटो की क्या औकात l
मांजा ऎसी बड़ो- बड़ो को मात दे जाए l
हरिशचंद्र को सड़क पे लाया l
वाल्मीकि के हाथों रामायण रचाया l
इस डोर का क्या कहना l
मुझे इसी डोर से है, अपनी पतंग उड़ना l
इसी डोर से है, अपनी पतंग उड़ना ll

Rajiv Mahali

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Responses

  1. सबकुछ सही लिखा है सर
    मगर “अज्ञानी को वाल्मीकि बनाया” पंक्ति पर मुझे आपत्ति है
    कितना जानते हैं आप वाल्मीकि जी के बारे में
    वही घिसा पिटा ज्ञान, अगर आपके पास कोई तर्क है तो जरूर बताएं।
    जिस राम को कोई जानता नहीं था उससे सबसे पहले साक्षात् कराने वाले! तुलसी को महान बनाने वाले !
    अज्ञानी कैसे हो सकते हैं!

    1. शायद आपको मेरा जबाब मिल गया होगा
      अगर नहीं तो ज्ञान का पहला मार्ग और प्रेरणा रूपी जीवन पढ़ लीजियेगा

  2. जैसा कि मानव जी ने कहा मैं उनकी बात से इत्तेफाक रखता हूं कवि को अज्ञानी बताना सही नहीं है

  3. मैं बहुत दिनों से पतंग पर एक कविता लिखना चाह रहा था आपने मेरी यह इच्छा पूरी कर दी

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