समाज की वास्तविक रूप रेखा(भाग_5))
घर की दहलीज जब लागी तो ऐसा मंजर देखा
जिन्होंने अपनों को खोया उनके लिए कोरोना महामारी
जो इससे बचकर घर वापस आए उनके लिए ये बीमारी
अभी भी सड़कों पर खुला तुम क्यूं घूम रहे
कब समझोगे अपनी जिम्मेदारी
कुछ अभी भी समझते मजाक इसे
कुछ की सांसे थमते देखा
यह आंखों देखी सच्चाई ,नहीं कोई रूपरेखा
गलियों में नजर आई लाशें,लगता जैसे हो रहे हो खेल तमाशे
ना जाने कैसा कहर यह आया है, थम गई ना जाने कितनी अनगिनत सांसे
गंगा मैया के घाट पर लाशों को एक क्रम से अनगिनत जलते देखा ।
आज समाज की ऐसी ही हो गई वास्तविक रूप रेखा
समसामयिकी यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती हुई बेहद मार्मिक रचना
आपका सादर अभिनन्दन
कोरोना हारेगा
कोरोना हारेगा देश जीतेगा
ये दिन भी गुजर जायेंगे कोरोना हारेगा
bhut achhi h kavita samaj ka yatharth chitran h.es kavita me.meri tarf se lekhika ko thank you.
बहुत खूब