सिसकियां अब कमरे में ही बंद रहती हैं..

हम आदतों से अब बाज आने लगे
तुमसे दूरियां बनाने लगे
रोया करते थे रात भर तुम्हें
याद करते हुए
अब हम अपने आँसू छुपाने लगे
सिसकियां अब कमरे में ही
बंद रहती हैं
बाहर नहीं जाती !
अब हम झूंठी हँसी दिखाने लगे
कोई फर्क नहीं पड़ता हमें
तुम्हारी मौजूदगी से
ये झूठी दिलासा दिल को दिलाने लगे
देख ना ले कोई मेरे गहरे जख्म़
इसलिए बेवजह मुस्कुराने लगे..

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Responses

  1. हृदय के भावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त करती हुई बहुत भाव पूर्ण रचना । सुन्दर शिल्प के साथ बहुत सुंदर कविता

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