सोच समझ के बोल

सोच समझ के बोल रे बंदिया
सोच समझ के बोल
जो तु बोले, तेरा पीछा ना छोड़े
मांगे हर अल्फाज़ अपना हिसाब
मान-अपमान दिलवाते, दिखलाये संस्कार
यही बनाए तेरे वैरी यही बनाए यार
सोच समझ के बोल रे बंदिया
सोच समझ के बोल
छलकेगा प्यार तेरा जिन अल्फाज़ों से
वो तेरा दामन खुशियों से भर देंगे
करेगा क्रोध जब तु इन्ही अल्फाज़ों से
फिर पीछा ना छूटे दर्द भरी तनहाईयों से
सब सच है कहते
सोच समझ के बोल रे बंदिया
सोच समझ के बोल ।

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Responses

  1. कवि अनु जी आपकी यह रचना बहुत ही बेहतरीन है। आपने संवेदनशीलता के साथ सशक्त भाषा के ज़रिए प्रभावशाली ढंग से काव्य रचना की है। पंक्तियाँ विचार, सम्प्रेषण और शिल्प के प्रतिमानों पर खरी उतर रही हैं। वाणी से निकले शब्द ही वास्तव में सम्मान या अपमान दिलाते हैं। बहुत सुंदर कविता। ऐसे ही खूब लिखते रहें।

  2. बहुत बहुत धन्यवाद जी
    आपका प्रोत्साहन लिखने की प्रेरणा देता है।

  3. “मान-अपमान दिलवाते, दिखलाये संस्कार
    यही बनाए तेरे वैरी यही बनाए यार”
    ___सोच समझ कर बोलने के लिए लिखी गई ,कवि अनु जी की
    यह बहुत सुंदर कविता है । बेहतर शिल्प के साथ यथार्थ कथ्य है कि हमारे शब्द ही हमारे संस्कार दिखलाते हैं और हमारे कथन ही हमारे मित्र अथवा शत्रु बनाते हैं। अति उत्तम लेखन

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