स्त्री

रहस्यवाद का जामा पहने स्त्री!
एक अनसुलझा रहस्य!
उलझे हुए धागों की एक गुत्थी।
शायद! पुरुष के लिए एक मकड़जाल।
पर हर स्त्री अपने आप में हैं बेमिसाल।
कभी वह खुली किताब बन जाती ,
जब अपने मनमीत से मिल जाती।
वरना नदिया की धारा सी
चुपचाप बहती जाती।
अश्कों में छुपाए अनकही कहानियो का चिट्ठा,
मुस्कुराहटों में छुपाए थोड़ा दर्द खट्टा मीठा।
एक ग्रंथ के बराबर स्त्री में कई परतें।
पूरा का पूरा ग्रंथ
तो कोई बिरला ही पढ़ पाता।
निमिषा सिंघल

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