हमसे दीवाने कहाँ..

अब कहां हमसे दीवाने रह गये

प्रेम की परिभाषा और मायने बदल गये, 

तब न होती थी एक- दूजे से मुलाकाते, 

सिर्फ इशारों मे होती थी दिल की बातें, 

बड़े सलीके से भेजते थे संदेश अपने प्यार का। 

पर अब कहाँ वो ड़ाकिये कबूतर रह गये, 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये। 

 जब वो सज- धजकर आती थी मुड़ेर पर, 

हम भी पहुँचते थे सामने की रोड़ पर, 

देखकर मुझे उनका हल्का- सा शर्माना, 

बना देता था हमे और भी उनका दीवाना। 

पर अब कहाँ हमसे परवाने रह गये, 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये। 

 दोस्तो संग जाकर कभी जो देखते थे फ़िल्मे, 

पहनते थे वेल बॉटम और बड़े नये चश्में, 

आकर सुनाते थे उन्हे हम गीत सब प्यारे, 

तुम ही तुम रहते हो बस दिल मे हमारे, 

पर अब कहाँ वो दिन प्यारे रह गये। 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।। 

 जो मिलता था मौका तो खुलकर जी लेते थे, 

कभी अपनी ‘राजदूत’ से टहल भी लेते थे, 

खूब उड़ाते थे धूल हम भी अपनी जवानी में, 

कभी हम भी ‘धर्मेन्द्र- हेमा’ बन जी लेते थे। 

पर अब कहाँ वो सुनहरे मौके रह गये, 

पर अब कहाँ हमसे परवाने रह गये। 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।। 

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Responses

  1. पहले और आज के प्रेम करने के तरीके में जमीन आसमान का अंतर आ गया है और कभी यही दर्शनाचा रहा है बहुत ही सुंदर भाव पक्ष तथा कला पक्ष दोनों ही मजबूत है कविता की संवेदनशीलता बहुत ही अच्छी है

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