हमारी धरती मां

गेंद जैसी गोल
धरोहर है अनमोल
थकती नहीं दिन रात सूरज के चक्कर लगाती है
सभी जीवो अपने अंचल में बसाती है इसीलिए ये हमारी धरती माता कहलाती है
लेकिन कई दिनो से है यह बीमार
थकी नहीं है ढोकर संसार का भार
डिप्रेशन में चली गई है देख कर अपने पुत्र का b
बदला व्यवहार
ग्लोबल वॉर्मिंग, ओजोन छिद्र, वनो का संहार
मानो दुर्योधन की सेना हरण करना चाहती है
दोपतीका श्रंगार
कई सदियों से एटम बम परमाणु बम के परीक्षण
धरती के अस्तित्व को रहे हैं ललकार
उसे दुख है कि उसका इलाज कराने के बजाय
उसके पुत्र बेचने को है तैयार

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