ज़िन्दगी ना- 1 थी

ज़िन्दगी ना  थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी

पक्की छत ना थी सर पे हमारी, जैसी तुम्हारी

Related Articles

नारी वर्णन

मयखाने में साक़ी जैसी दीपक में बाती जैसी नयनो में फैले काजल सी बगिया में अमराई जैसी बरगद की शीतल छाया-सी बसन्त शोभित सुरभी जैसी…

यादें

बेवजह, बेसबब सी खुशी जाने क्यों थीं? चुपके से यादें मेरे दिल में समायीं थीं, अकेले नहीं, काफ़िला संग लाईं थीं, मेरे साथ दोस्ती निभाने…

Responses

+

New Report

Close