2021
अंधकार का जो साया था,
तिमिर घनेरा जो छाया था,
निज निलयों में बंद पड़े थे,
रोशन दीपक मंद पड़े थे।
निज श्वांस पे पहरा जारी,
अंदर हीं रहना लाचारी ,
साल विगत था अत्याचारी,
दुख के हीं तो थे अधिकारी।
निराशा के बादल फल कर,
रखते सबको घर के अंदर,
जाने कौन लोक से आए,
घन घोर घटा अंधियारे साए।
कहते राह जरुरी चलना ,
पर नर हौले हौले चलना ,
वृथा नहीं हो जाए वसुधा ,
अवनि पे हीं तुझको फलना।
जीवन की नूतन परिभाषा ,
जग जीवन की नूतन भाषा ,
नर में जग में पूर्ण समन्वय ,
पूर्ण जगत हो ये अभिलाषा।
नए साल का नए जोश से,
स्वागत करता नए होश से,
हौले मानव बदल रहा है,
विश्व हमारा संभल रहा है।
अजय अमिताभ सुमन
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Pragya Shukla - January 1, 2021, 3:58 pm
बहुत सुंदर लेखन
Ajay Amitabh Suman - January 1, 2021, 9:04 pm
धन्यवाद प्रज्ञा जी
Geeta kumari - January 1, 2021, 8:26 pm
बहुत सुंदर रचना
Ajay Amitabh Suman - January 1, 2021, 9:04 pm
धन्यवाद गीता जी