सूर्य मैं सूर्य
हूँ लाखो वर्षो सी यूँ ही जल रहा मैं
हूँ ख़ुद में आग लगा कर जल रहा मैं
जला ख़ुद को कर रहा रोशन तुमको मैं
किसी को लगता निकला अभी यहां मैं
किसी को लगता छुपा अभी वहां पे मैं
मेरा ख़ुद का ना कभी छुपना ना निकलना
मेरा वजूद है बस जलना तपना चलना
मैं अघोर तपस्वी ना कभी जिसे विश्राम
भखना ही मेरी तपस्या जलना मेरा मान
कबसे हूँ ना जाने मैं इस तपस्या में मगन
यूँही रहूँगा जलता जब तक ना होयूँ भस्म
कर्म है मेरा, ख़ुद जल करना रोशान जहां
सूर्य मैं सूर्य, हूँ मैं बिलकुल अकेला यहां
पूरे ब्रह्मांड में ना कोई और मेरे जैसा यहां
…… यूई
बहुत बढ़िया रचना
Beautiful poetry