गाँव की एक रात
काली आधी रात में,
दुनिया देख रही थी सपने |
आलस का आलम था चहु ओर
रात भी लग रही थी ऊंघने |
तब मैंने छत से देखा,
बतखो के झुण्ड को तलाब में |
ठंडी हवा भी चलने लगी,
रात के आखरी पहर मे |
मछलिया खूब उछाल रही थी,
फड़ फाड़ा रही थी इधर उधर |
सोचा हाथ लगाउ उनको,
पर ना जाने गई किधर |
तभी कुछ शोर सुनाई दिया आसमान में,
बागुले उड़ रहे थे एक पंक्ति में |
जैसे वो सब मस्त है आजादी में,
मैंने भी आजादी महसूस की उन सबकी संगति मे |
वाह बहुत सुंदर रचना
सुंदर
Bahut khub
Nice
Very gud
Beautiful poem
Good
Ati sundar
waah waah