गाँव की एक रात

काली आधी रात में,
दुनिया देख रही थी सपने |
आलस का आलम था चहु ओर
रात भी लग रही थी ऊंघने |

तब मैंने छत से देखा,
बतखो के झुण्ड को तलाब में |
ठंडी हवा भी चलने लगी,
रात के आखरी पहर मे |

मछलिया खूब उछाल रही थी,
फड़ फाड़ा रही थी इधर उधर |
सोचा हाथ लगाउ उनको,
पर ना जाने गई किधर |

तभी कुछ शोर सुनाई दिया आसमान में,
बागुले उड़ रहे थे एक पंक्ति में |
जैसे वो सब मस्त है आजादी में,
मैंने भी आजादी महसूस की उन सबकी संगति मे |

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)

वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…

Responses

+

New Report

Close