Ghazal
जिसे देख देख कर मैंने पुरी ग़ज़ल लिख डाली,
वहीं रूबाई में औरों का नाम ढुंढता है।
मेरी हर रात गुजरी इंतजार में झरोखे पर,
वो है कि मिलने को कोई शाम ढुंढता है।
चांद की खुबसूरती उसके दाग में है,
वो दीवाना सबकुछ बेदाग ढुंढता है।
कुछ कहने सुनने का अब मौसम कहां रहा,
वो समझे ना समझे , मेरा दिल भी अब आराम ढुंढता है।
वाह बहुत खूब
Thank you sir
बहुत सुंदर रचना
Thank you di
Wah
Thank you di
waah wah
Thank you sir
Good
Thank you sir
Wah
VERY NICE
Thank you
वाह बहुत सुंदर
धन्यवाद
Kaon