ज़िन्दगी की किताब

गहनता से लिख रही हूँ मैं
लफ्ज़ कम लगते हैं
गर लिखने बैठो
ज़िन्दगी की किताब
चंद लम्हे फुर्सत मिली
बाकी रहा ज़िम्मेदारियों का दबाव
यादों को तक सँजो ना सके
रखते रहे पल पल का हिसाब
बड़ा कठिन है ज़िन्दगी में
उसूलों पर चलना
वक़्त के साथ सलीके में रहना
कभी तो बड़ा दर्द देता है
भावनाओं का बिखरना
बैचैन किये रहता है इनका
सुख दुःख में बँट जाना
उलझने फँसाती जातीं हैं बेहिसाब
अंदाज ए ज़िन्दगी बड़ा लाजवाब
काश कभी कोई इतना ही समझ जाए
नासूर बन जाते है छोटे छोटे दर्द
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से

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Responses

  1. यादों तक को संजो ना सके।
    अनीता जी।
    आपने भावनाएँ अच्छी प्रकट की,
    परंतु कहीं कहीं मात खा रही हैं

  2. जिंदगी की किताब और किसी को गहनता से पढ़ना चाहिए और लिखना भी चाहिए

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